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कविता संग्रह >> मेरे गीत समर्पित उसको

मेरे गीत समर्पित उसको

कमलेश द्विवेदी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :295
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9589

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कानपुर का गीत विधा से चोली-दामन का रिश्ता है। यहाँ का कवि चाहे किसी रस में लिखे

हरफनमौला कवि : डॉ.कमलेश द्विवेदी


 डॉ. कमलेश द्विवेदी हरफनमौला कवि हैं. ये जिस विधा को छूते हैं, उसी को चमका देते हैं। कानपुर का गीत विधा से चोली-दामन का रिश्ता है। यहाँ का कवि चाहे किसी रस में लिखे, मगर वह मूलतः गीतकार ही होता है। कमलेश भी काव्यमंचों पर अपने व्यंग्यों के बाण चलाकर लोगों को उसी तरह घायल करते रहे हैं, जैसे तिरछे नैन घायल कर देते हैं, फिर भी प्यारे लगते हैं। मगर इनके गीत उन व्यंग्यों से भी अधिक विद्धकर और ध्वन्यात्मक हैं। इनके गीत सनातन मानव संवेदनाओं से जुड़े हुए हैं और सहज-सपाट न होकर बबूल के काँटे की तरह बींधकर टीस पैदा कर देते हैं। अच्छे गीतों की यही पहचान भी है। उस चुभन में जो आनंद आता है, वह आचार्यों की दृष्टि में ब्रह्मानंद-सहोदर होता है। जिसका जीवन `आज सफर से लौटे हैं हम, कल फिर जाना है' जैसा चलायमान हो, वह एक साँस में शताधिक विविधवर्णी प्रेमगीत गा दे, तो सुखद आश्चर्य होता है.क्योंकि आज के तकनीकी युग में प्रेम का भाव दुर्लभ हो गया है। एक आश्वस्ति भी जगती है कि आज के घोर बेसुरे दौर में, कमलेश जैसी युवा प्रतिभाओं के बल पर हिन्दी गीत-धारा निरंतर प्रवाहित होती रहेगी। मेरा विश्वास है - `कहीं नहीं हैं हम चित्रों में, फिर भी लगता है हम हैं' के समर्थ गीतकार को हर पाठक अपने दिल के अलबम में रखना चाहेगा। 

- डॉ.बुद्धिनाथ मिश्र 

देवधा हाउस,

5 /2 वसंत विहार एन्क्लेव

देहरादून-248006
मो.09412992244

 

 

अपने काव्य-गुरु डॉ. कमलेश द्विवेदी जी के प्रति

जिस दीपक से आलोकित हो गीत-ग़ज़ल मैं गाऊँ,
जिनकी रचना के प्रवाह का गंगाजल मैं पाऊँ।

जिसने मेरे जड़वत चिंतन को चैतन्य किया है,
जिसने मुझे सिखाकर सब कुछ मुझको धन्य किया है।

शब्द-भाव-यति-गति छंदों का दान नहीं मिल पाता,
आप न मिलते तो कविता का ज्ञान नहीं मिल पाता।

सहज-सरल बोली में सच्ची बातें जो बतलाते,
यदा-कदा ही ऐसे कविगण इस धरती पर आते।

करूँ 'अर्चना' यही हृदय से यों ही लिखते जायें,
कालजयी हों गीत आपके सब को सुख पहुंचायें।

 - अर्चना पांडा

 हिंदी कवयित्री

 कैलीफोर्निया (अमेरिका)

मन के गीतों को भी लोग सुनें...

 

 'एक हास्य-व्यंग्य कवि का गीत संग्रह' सुनने में थोड़ा अटपटा तो लगता है पर अब तो आ ही गया है आपके सामने। मैं अपनी गीत-यात्रा के बारे में बताऊँ तो शायद यह अटपटापन स्वत: ही समाप्त हो जायेगा।

 सितंबर 1984 'कविकुल' द्वारा सेंट्रल पार्क, शास्त्री नगर, कानपुर में एक कवि गोष्ठी का आयोजन कृष्णानंद चौबे जी के सान्निध्य में। मेरे लिए किसी कवि गोष्ठी में भाग लेने का पहला अवसर। मेरे द्वारा एक गीत और एक व्यंग्य रचना का पाठ। गीत को कोई खास तवज्जो नहीं। व्यंग्य रचना की अप्रत्याशित सराहना। बस गोष्ठी से शुरू हुई व्यंग्य-यात्रा मंचों तक पहुँच गयी लेकिन गीत-यात्रा भी रुकी नहीं। भले धीमी गति से सही पर डायरी से होती हुई यह यात्रा न केवल पत्र-पत्रिकाओं तक पहुँची वरन् अनेक समवेत गीत-संकलनों और साहित्यिक वार्षिकियों में भी समय-समय पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराती रही। यह क्रम आज भी जारी है।

जहाँ एक ओर डॉ॰ सेवक वात्स्यायन जी, डॉ॰ उपेन्द्र जी, डॉ॰ गणेश शंकर शुक्ल 'बंधु' जी, धर्मपाल अवस्थी जी, सुमन दुबे जी, शिव कुमार सिंह कुँवर जी जैसे आचार्यों ने मेरे गीतों को अपना स्नेहाशीष दिया। वहीं दूसरी ओर कुछ गीतों को डॉ॰ सूर्य प्रसाद शुक्ला जी, डी॰लिट् और डॉ॰ नारायणी शुक्ला ने अपनी शोध कृतियों में शामिल करके तथा डॉ॰ विनोद त्रिपाठी ने सम्मानित करके मेरी गीत-यात्रा को गतिशीलता प्रदान की। कवि सम्मेलनीय यात्राओं में जब भी सोम ठाकुर जी, डॉ॰ कुँअर बेचैन जी, डॉ॰ बुद्धिनाथ मिश्र जी, कैलाश गौतम जी, मनोहर मनोज जी और डॉ॰ शिवओम अम्बर जी जैसे सुधी साहित्यकारों का सान्निध्य मिला तो मैंने उन्हें अपने गीत सुनाकर आशीष लेने का कोई मौका कभी नहीं छोड़ा। ए॰ बी॰ लाल श्रीवास्तव जी, निशंक वाजपेई जी, श्याम सुन्दर निगम जी, सुधीर निगम जी, डॉ॰ नरेश कात्यायन जी, सुधांशु उपाध्याय जी, यश मालवीय जी, राजेश राज जी, मुनेन्द्र शुक्ला जी, विनोद तरुण जी, अंसार कम्बरी जी, शैलेन्द्र शर्मा जी, के॰ के॰ शुक्ला जी, सुनील बाजपेयी जी, विनोद श्रीवास्तव जी, राघवेन्द्र भदौरिया जी, पंकज परदेशी जी, सत्य प्रकाश शर्मा जी, देवेन्द्र सफल जी, मृदुल तिवारी जी, जयराम सिंह 'जय' जी, राजेंद्र तिवारी जी, रामकृष्ण 'प्रेमी' जी, के. के. पाण्डेय ज्ञानी जी, डॉ॰ अंजनी सरीन जी, डॉ॰ शशि शुक्ला जी आदि जैसे अनेक स्नेही जनों ने इन गीतों को जब भी सुना तो सराहा। मेरी हास्य-व्यंग्य विधा के ओमनारायण शुक्ला जी, प्रबुद्ध तिवारी जी, के॰ के॰ अग्निहोत्री जी, दीप शर्मा जी, भाई चक्रधर शुक्ला, राघवेन्द्र त्रिपाठी, दुर्गा बाजपेई और श्रवण शुक्ला आदि ने भी मेरे गीतों को स्नेह-सम्मान दिया। इस संग्रह के कई गीतों को 'नवनीत' के संपादक डॉ॰ गिरिजाशंकर त्रिवेदी जी और 'भक्त समाज' के संपादक आचार्य संतोषानंद अवधूत जी ने भी समय-समय पर प्रकाशित किया। इन सबके प्रति हृदय से आभारी हूँ। अपना विशेष आभार कैलीफोर्निया (अमेरिका) की एक सशक्त हिन्दी कवयित्री श्रीमती अर्चना पांडा के प्रति व्यक्त करना चाहूँगा जिनके सहयोग के बिना मेरे गीत, संग्रह के रूप में शायद ही आपके सामने आ पाते। पाण्डुलिपि से लेकर प्रकाशन तक अर्चना के सहयोग को शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता।

 अपनी पत्नी श्रीमती रजनी द्विवेदी के प्रति अपना स्नेहिल आभार व्यक्त करना चाहूँगा जिन्होंने मेरे श्रृंगारिक गीतों को सुनकर-पढ़कर कभी मजाक में भी यह नहीं पूछा कि ये गीत मैंने किसके लिए लिखे हैं या लिखता हूँ? वरना यह गीत-यात्रा शायद ही आगे बढ़ पाती। मेरे दामाद देवेन्द्र मिश्र और लोकेश मिश्र, बेटी अनामिका, प्रज्ञा और बेटे दिव्यांश के प्रति भी स्नेहिल आभार जो मेरे गीतों को भी उतना ही पसंद करते हैं जितना मेरी हास्य-व्यंग्य रचनाओं को।

 अंत में यही कहना चाहूँगा कि 'मेरे गीत समर्पित उसको॰॰॰' के गीत सिर्फ 'उसको' ही नहीं वरन् आप सबको समर्पित हैं अगर ये आपके हृदय तक पहुँचने में ज़रा भी सफल होते हैं। क्योंकि मेरा तो मानना है-

माना गीतों में सब कहना संभव होता है
मगर वही कह पाता जिसको अनुभव होता है
अपना तो अनुभव है थोड़ा कैसे शब्द चुनें
मन करता है मन के गीतों को भी लोग सुनें।

 अब मेरे मन के ये गीत आपके मन के भी हैं या नहीं, यह तो आप ही बतायेंगे।

 

- डॉ. कमलेश द्विवेदी

 

 

 

 

पूज्य पिता

स्व. प्रेमनाथ द्विवेदी 'रामायणी'

की

पावन स्मृति को,

 

.पूज्य माता

श्रीमती सुशीला देवी

के शुभाशीष को

और...

 

मेरे गीत समर्पित उसको जिसने ये लिखवाये हैं।

शब्द उसी से अर्थ उसी से भाव उसी से पाये हैं।।

 

मैंने ऐसा कब सोचा था-

गीत कभी लिख पाऊँगा मैं।

स्वर भी ऐसा नहीं मिला था

जो कि सोचता गाऊँगा मैं।

मेरे स्वर में गीत उसी ने गाये और सुनाये हैं।

मेरे गीत समर्पित उसको जिसने ये लिखवाये हैं।।

मैं तो एक माध्यम भर हूँ

वरना इनमें क्या है मेरा।

अगर न सूरज करे रौशनी

क्या हो सकता कभी सवेरा?

ये उसने ही किये प्रकाशित जन-जन तक पहुँचाये हैं।

मेरे गीत समर्पित उसको जिसने ये लिखवाये हैं।।

 

जो प्रवाह सौंपा है उसने

वैसा ही अब रहे निरंतर।

गीतों की यह पावन धारा

गंगा जैसी बहे निरंतर।

मैं भी सबको भाऊँ ज्यों ये गीत सभी को भाये हैं।

मेरे गीत समर्पित उसको जिसने ये लिखवाये हैं।।

 - डॉ. कमलेश द्विवेदी

 

 

 

रस-परिपाक और छंद आदि की दृष्टि से निष्कलंक और प्यारे गीतों का सुंदर गुलदस्ता है डॉ॰ कमलेश द्विवेदी का यह गीत-संग्रह

- डॉ. कुँअर बेचैन

मानव-जीवन अपने-आप में तो वरदान है ही किन्तु मानव-जीवन को भी परमात्मा ने जो सबसे बड़ा वरदान दिया है, वह है प्रेम। प्रेम एक ऐसी अनुभूति है जिसकी अभिव्यक्ति सुकोमल फूलों की आनंददायी सुगंध के रूप में मन और सारे वातावरण को महकाकर व्यक्ति के व्यवहार को सुकोमल बनाती है। इंसान के लिए प्रेम से बड़ा अन्य कोई प्रेरणा-स्रोत भी नहीं है। वह प्रस्थान-बिन्दु भी है और लक्ष्य भी। प्रेम जीवन में रस तो घोलता ही है, जीवन के रहस्य भी खोलता है। प्रेम, प्रेम करने वाले के जीवन को तो सुंदर बनाता ही है, संसार को भी सुंदर बनाने की कल्पना करता है। प्रेम व्यक्ति को दूसरों से भी जोड़ता है। प्रेम की आहट मात्र ही व्यक्ति को भाव-विभोर बना देती है और बिन्दु को विस्तृत आकार देती है। प्रेम ही व्यक्ति का व्यक्ति तक और ईश्वर तक पहुँचने का सबसे सरल रास्ता है। कविवर डॉ कमलेश द्विवेदी ने भी हिन्दी तथा अन्य भाषाओं के कवियों की तरह अपने इस गीत-संग्रह में इसी प्रेम की विभिन्न छवियों को बहुत सुंदर ढंग से अभिव्यक्त किया है।

 प्रेम में दो पात्र होते हैं- एक वह जिससे प्रेम किया जाता है, साहित्यिक भाषा में जिसे आलंबन कहा जाता है और दूसरा वह जो प्रेम करता है साहित्यिक भाषा में जिसे आश्रय कहते हैं। गीतों में सामान्यत: गीतकार ही आश्रय के रूप में रहता है अर्थात् प्रेमी के रूप में। उसके सामने उसका प्रिय होता है। कमलेश द्विवेदी जी भी आश्रय के रूप में अपने गीतों में दिखाई देते हैं। वे अपने प्रिय के सौन्दर्य- तन और मन दोनों सौंदर्य- की सुंदर अभिव्यक्ति करते हैं। उनके गीतों में प्रिय का सौंदर्य सागर की तरह हिलोरें मारता है, जिसमें कवि भीगता रहता है।

 प्रेम की दो स्थितियाँ हैं- एक संयोग श्रृंगार की और दूसरी विप्रलंभ श्रृंगार की। कवि कमलेश द्विवेदी ने इन दोनों ही स्थितियों को अपने गीतों में स्थान दिया है। प्रेम को ही रसों में रस-राज और श्रृंगार रस की निधि माना जाता है। प्रेम को ही इस रस का स्थायी भाव माना जाता है जिसे रति के नाम से पुकारा जाता है। कवि ने अपने गीतों में इस स्थायी भाव को बड़ी खूबी से और संयत भाषा में प्रकट किया है। इसके लिए इन्होंने विभिन्न अनुभावों और उद्दीपनों का सहारा लिया है। जहाँ अवसर मिला है वहाँ प्रकृति के वातावरण को भी उद्दीपन बनाया गया है। विप्रलंभ अर्थात् वियोग श्रृंगार की स्थितियों को भी कवि ने अपने गीतों में स्थान दिया है। वियोग की चार अवस्थाएँ मानी जाती हैं- 'पूर्वराग अर्थात् प्रेमी द्वारा प्रिय को देखे बिना ही विरह में तड़पने की स्थिति, मान अर्थात् प्रिय के रूठने की स्थिति, प्रवास अर्थात् प्रिय के परदेस चले जाने की स्थिति और मरण अर्थात् प्रिय की मृत्यु।' कवि ने स्थान-स्थान पर प्रथम तीनों अवस्थाओं का सांकेतिक चित्रण किया है। इसी प्रकार विरह की दस दशाओं का भी चित्रण इन गीतों में हुआ है। ये दशाएँ हैं- 'अभिलाषा, चिंता, स्मरण, गुणकथन, प्रलाप, उद्वेग, उन्माद, व्याधि, मूरछा और मरण।' कवि ने वियोग में तड़पते हुए प्रेमी की इन दशाओं का चित्रण करने में भी महारत हासिल की है।

 गीत की सबसे बड़ी विशेषता होती है आत्माभिव्यक्ति। गीत के इसी महत्वपूर्ण गुण के कारण गीत को कवि की अनुभूति की सबसे प्रामाणिक कृति कहा जाता है। कवि गीतों में ही अपने सच्चे भावों को सीधे-सीधे कह पाता है क्योंकि इस साहित्यिक विधा में वह ही प्रमुख नायक होता है। कमलेश जी ने अपने जज़्बात की विविध तरंगों को अपने इन गीतों में इस प्रकार शब्दबद्ध किया है कि वे दूसरों के मन में भी इसी प्रकार के जज़्बात जगाने में सफल हुए हैं अर्थात् इनके गीतों द्वारा व्यक्तिगत अनुभूतियों का सामान्यीकरण हुआ है जिसे आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने साधारणीकरण नाम दिया है और जिसे उन्होंने श्रेष्ठ साहित्य की सबसे बड़ी विशेषता बताया है। गीत की दूसरी विशेषता है गेयता। कमलेश जी के गीत गेयता की दृष्टि से भी बहुत सफल हुए हैं। इसके पीछे जो कारण है वह है- कवि की शब्द-संयोजन की कला और उनका छंद-ज्ञान। स्वर-मैत्री, वर्ण-मैत्री और शब्द-मैत्री के साथ-साथ सरल-सहज प्रतीक और बिम्ब तथा बिना किसी प्रयास के आए हुए अलंकार और भाषा की मुहावरेदारी ने भी इनके गीतों में माधुर्य तथा रसमयता की सृष्टि की है। भाषा की प्रांजलता और शब्दों के लाक्षणिक प्रयोगों ने भी इन गीतों को उदात्तता प्रदान करते हुए सर्व-सुलभ एवं प्रिय बना दिया है। मैं हिन्दी काव्य-मंचों पर हास्य-व्यंग्य के एक आवश्यक कवि के रूप में प्रसिद्ध, किन्तु दूसरी ओर महत्वपूर्ण गीतकार और ग़ज़लकार के रूप में जाने-पहचाने और अनेक सम्मान तथा पुरस्कार-प्राप्त कवि डॉ. कमलेश द्विवेदी जी के प्रेम-गीतों के पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित होने के शुभ अवसर पर इन्हें हार्दिक बधाइयाँ देता हूँ और आशा करता हूँ कि हमें इनके अन्य महत्वपूर्ण संग्रह भी पढ़ने को मिलेंगे।

 

गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)

मो. - 09818379422

 

 

अनुक्रम

1. विनती करूँ लेखनी तुझसे   25

2. माँ का प्यार नहीं है  27

3. जो गीत तुम्हारे लिए लिखे   29

4. तुम ही तुम हो लाखों में   31

5. मैं पत्थर था मैं पत्थर हूँ  33

6. मन पर अधिकार तुम्हारा है  35

7. आज तुम्हारा अलबम देखा    37

8. जो तुमसे प्यार न करता मैं   39

9. फूल तुम्हारी राह में   41

10. आओ हम बात करें  43

11. नेह-नदी   45

12. गीत ख़ुशी के गाये जा    47

13. इतना तो विश्वास करो   49

14. महके चमन हमारा   51

15. तेरे अधरों की चौपाई  53

16. पूरी कहो कहानी    55

17. मुझको मेरा गीत मिल गया    57

18. क्या है मुझको यार बता    59

19. किससे दर्द कहें  62

20. मन करता है मैं रूठूँ   64

21. तुम उससे प्यार नहीं करना    66

22. अब तक केवल उसे जिया है  68

23. दिल हम कभी न तोड़ें  70

24. उससे दिल की कह ही डाली    72

25. हम न अभी तक कह पाये हैं  74

26. कितनी प्रीति हमारी गहरी   76

27. तुम ही मेरा जीवन हो   78

28. मुझको तुमसे प्यार नहीं है  80

29. आख़िरकार मामला क्या है  82

30. तुम जीते हम हारे  84

31. मैंने दिल का प्रश्न किया तो    86

32. हुए तुम क्यों इतने मजबूर  88

33. रोज़ सवेरे  90

34. सोलह आने तुम दोषी हो   92

35. मन करता है साथ तुम्हारे  94

36. बादल छाये हैं  96

37. दिल में कितनी ही बातें हैं  98

38. जिसके मन से मन मिल जाता    100

39. मन ने याद किया है  102

40. हम पावस के गीत   104

41. हम हो जायें गंगासागर  106

42. अपने भी बेगाने लगते हैं  108

43. उससे क्या रिश्ता-नाता है  110

44. कभी तुम्हारी कॉल न आई  112

45. अनायास ही इस जीवन में   114

46. मेरा गीत उदास न होगा    116

47. पत्र पुराने पाये   118

48. मन की पुस्तक   120

49. काबिज़ याद तुम्हारी है  122

50. केवल वही सगा होता है  124

51. ये दुनिया दीवानों की है  126

52. मैं खोया-खोया रहता हूँ  128

53. सपने ही मेरा जीवन है  130

54. लाजवाब लिख दूँ मैं   132

55. कितने गहरे नाते हैं  134

56. ग़ज़लें तुझे बुलायेंगी    136

57. आज नहीं तो कल आओगे   138

58. वो चित्रों से बोल रहा हूँ  140

59. अपने गीत सुनाता हूँ  142

60. दो बातें करने को    144

61. दो पल साथ हमारे बैठो    146

62. मैंने दिल की बात कही   148

63. और किसी से प्यार न करना    150

64. तुम मेरे सपनों में आते   152

65. जो हम सोचें वो तुम सोचो    154

66. मेरे गीत चले आओ ना    156

67. जैसे रहती है पावनता    158

68. हमको दिल से प्यार  160

69. कब तक यों तोड़ोगे वादे  162

70. हमने गीत लिखा है  164

71. अब तक जब संयोग लिखा है  166

72. कुछ हमने गीत लिखे   168

73. तुम अपनी ग़ज़ल सुनाओ    170

74. बचपन की अनुभूति    172

75. तेरा स्वर कानों में गूँजा    174

76. तुम नदिया के पार चलो    176

77. गीतों का उपहार  178

78. प्रकाश तू ही फैलाती है  180

79. फिर आये दिन इन्द्रधनुष के   182

80. पर वो भी तो प्यार करे  184

81. मैंने अम्बर चूम लिया    186

82. जाने ये कैसे रिश्ते हैं  188

83. प्रेम का मुझको अर्थ बताओ    190

84. मन के गीत लिखूँ मैं   192

85. कुछ शब्दों में कैसे कह दूँ  194

86. आज पत्र में लिखता हूँ मैं   196

87. तुम मुझे छोड़ कर मत जाना    198

88. तेरा रूप सलोना    200

89. तुम पर जो विश्वास किया है  202

90. तेरी याद दिला जाता है  204

91. सुबह स्वप्न में देखा मैंने   206

92. हमने कभी न सोचा था    208

93. इंतज़ार की हद होती है  210

94. बादल हो बरसात न हो तो    212

95. गीत अधूरा रह जायेगा    214

96. तुम मेरे जीवन में आये   216

97. तुम कितने अच्छे लगते हो   218

98. आओ हम-तुम प्यार करें  220

99. मन के गीतों को भी लोग सुनें   222

100. कितने रिश्तों को ठुकराकर  224

101. कल तक मुझसे दूर बहुत था    226

102. जो कभी किसी से नहीं कहा   228

103. मुझको थोड़ी ख़ुशी मिली    230

104. अपने गीतों में हम   232

105. हम करते हैं यही कामना    234

106. महकाने का वादा करके   236

107. बोलो अब कैसे बोलूँ मैं   238

108. कैसे पावस गीत लिखूँ मैं   240

109. मन पर कैसे कोई काबू पाये   242

110. फिर स्मृति में आया कोई  244

111. जाओ-जाओ साथी जाओ    246

112. अब न कभी भी प्यार करेंगे   248

113. ग़म के साथ ख़ुशी भी देखो    250

114. कभी न सोचो    252

115. कितना मुश्किल है ख़ुश रहना    254

116. गंगा बहती जाये रे  256

117. देखो फिर सावन आया है  258

118. गीत स्वयं बन जायेंगे हम   260

119. आगे बढ़ना सीख रहा हूँ  262

120. वो नाराज़ हो गया    264

121. शब्दों की नइया    266

122. कोई पेड़ लगाता है  268

123. रिश्ते-नाते चक्रव्यूह हैं  270

124. कसे रहो पतवार निरंतर  272

125. जब तक जड़ से जुड़े रहोगे   274

126. कितनी अधिक ख़ुशी मिलती है  276

127. हम बादल हैं  278

128. सपने तो सपने होते हैं  280

129. हरा नहीं हो सकता है  282

130. मुझको यह विश्वास नहीं है  284

131. समझ न पाये जीवन को गहराई से   286

132. आज सफ़र से लौटे हैं हम   288

133. मन चमन हो गया    290

134. वैसे ही दिन फिर आयेंगे   292

 

 

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